Sunday, January 5, 2025

रुमा देवी की प्रेरणादायक कहानी

 रुमा देवी की कढ़ाई विरासत:  16 नवंबर 1988 को राजस्थान के बाड़मेर जिले के एक छोटे से गाँव में जन्मीं रुमा देवी, पारंपरिक शिल्प और रंगीन परंपराओं से समृद्ध इस क्षेत्र की पहचान हैं। साधारण परिवार में पली-बढ़ी रुमा ने ग्रामीण भारत में महिलाओं की कठिनाइयों को करीब से देखा। इन चुनौतियों के बीच, उन्होंने पारंपरिक शिल्प की अपार संभावनाओं को भी महसूस किया, जो पीढ़ी दर पीढ़ी महिलाओं को सौंपी जाती रही थी।

बचपन से ही रुमा को कढ़ाई के बारीक और कलात्मक काम में रुचि थी। यह कला उनके परिवार और समुदाय का हिस्सा थी। उन्होंने पारंपरिक राजस्थानी कढ़ाई को अपनी रचनात्मकता के साथ जोड़ते हुए इसे और निखारा।

टर्निंग पॉइंट: 17 साल की उम्र में विवाह के बाद, रुमा देवी का जीवन एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आ गया। अपने पति के घर में उन्होंने महसूस किया कि उनके समुदाय की कई महिलाएं आर्थिक तंगी से जूझ रही हैं। अधिकांश महिलाएं खेती पर निर्भर थीं, जो अक्सर मौसम की अनिश्चितता पर निर्भर करती थी।

परिवर्तन लाने के दृढ़ निश्चय के साथ, रुमा ने अपने गहने बेचकर एक सिलाई मशीन खरीदी। उस एक मशीन के साथ उन्होंने सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि अपने गाँव की अन्य महिलाओं के लिए भी बदलाव की राह तैयार की। धीरे-धीरे उन्होंने महिलाओं को इकट्ठा किया और उन्हें कढ़ाई का हुनर सिखाया, जिससे वे इस कला को आजीविका का साधन बना सकें।

नेटवर्क का निर्माण: जो एक छोटे से प्रयास के रूप में शुरू हुआ, वह एक आंदोलन में बदल गया। रुमा के जुनून और दृढ़ता ने उन्हें एक स्वयं सहायता समूह बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने पारंपरिक कढ़ाई तकनीकों को सिखाने और आधुनिक रुझानों के अनुकूल डिज़ाइन प्रस्तुत करने के लिए प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए।

अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के माध्यम से, रुमा ने 30,000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं का एक नेटवर्क तैयार किया। ये महिलाएं, जो पहले कभी अपने गाँव से बाहर नहीं गई थीं, अब खूबसूरत हस्तशिल्प बना रही हैं, जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच रहे हैं।

मान्यता और प्रभाव: रुमा के प्रयास व्यर्थ नहीं गए। 2018 में, उन्हें महिलाओं के लिए भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार “नारी शक्ति पुरस्कार” प्रदान किया गया। इस मान्यता ने उनके काम को सुर्खियों में ला दिया और अनगिनत लोगों को प्रेरित किया। उनकी कहानी यह साबित करती है कि जमीनी स्तर की पहल से समाज में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।

जीवन सशक्तिकरण: आज, रुमा देवी ग्रामीण महिलाओं के लिए आशा की एक किरण हैं। उनका संगठन न केवल उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करता है, बल्कि आत्मविश्वास और गरिमा भी देता है। पारंपरिक शिल्प और वैश्विक बाजारों के बीच पुल बनाकर, रुमा ने राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए स्थायी आजीविका बनाई है।

उनकी यात्रा यह साबित करती है कि एक सुई और धागा, एक दृढ़ निश्चयी महिला के हाथों में, परिवर्तन का एक सुंदर ताना-बाना बुन सकता है।

Tuesday, October 8, 2024

Bharat Ek Khoj |

भारत एक खोज 1988 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का धारावाहिक है, जिसे प्रसिद्ध फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल ने निर्देशित किया था। यह धारावाहिक पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रसिद्ध पुस्तक द डिस्कवरी ऑफ इंडिया पर आधारित है और भारत के 5,000 वर्षों के इतिहास, संस्कृति और दर्शन को व्यापक रूप से प्रस्तुत करता है। यह सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर वैदिक युग, बौद्ध और जैन धर्म के उदय, भक्ति और सूफी आंदोलन, मुगल साम्राज्य की समृद्धि, ब्रिटिश उपनिवेशवाद और अंततः स्वतंत्रता संग्राम तक की यात्रा को जीवंत तरीके से दर्शाता है। इस धारावाहिक में नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, रोशन सेठ, कुलभूषण खरबंदा और टॉम ऑल्टर जैसे दिग्गज कलाकारों ने ऐतिहासिक चरित्रों को बेजोड़ प्रामाणिकता और गहराई के साथ प्रस्तुत किया। हर एपिसोड में गहन शोध और ऐतिहासिक तथ्यों की सटीकता झलकती है, जिसे विद्वानों और इतिहासकारों के सहयोग से तैयार किया गया था।

यह धारावाहिक भारत की विविधता में एकता की अनूठी विरासत को प्रदर्शित करता है। इसमें दर्शाया गया कि कैसे विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और दर्शन ने एक दूसरे के साथ सह-अस्तित्व किया और भारत को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाया। इसमें दार्शनिक चर्चाओं, सामाजिक सुधार आंदोलनों, और कला, साहित्य और वास्तुकला के विकास को प्रमुखता से दिखाया गया है। भारत एक खोज ने न केवल दर्शकों को भारत के अतीत से जोड़ा, बल्कि उन्हें अपनी सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व करने के लिए प्रेरित भी किया। यह धारावाहिक शिक्षा और मनोरंजन का अद्वितीय संगम था, जिसने भारतीय टेलीविजन के इतिहास में एक मील का पत्थर स्थापित किया। आलोचकों ने इसके गहन शोध, ऐतिहासिक प्रामाणिकता और दर्शकों को आकर्षित करने की अनोखी शैली की सराहना की।

आज, दशकों बाद भी, भारत एक खोज की प्रासंगिकता बनी हुई है। डिजिटल प्लेटफार्मों पर इसकी उपलब्धता ने इसे नई पीढ़ी के दर्शकों तक पहुंचाया है। इसकी समय-समय पर प्रस्तुतियां यह दर्शाती हैं कि अतीत की घटनाएं आज के समाज और समस्याओं को कैसे प्रभावित करती हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत भारतीय ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा देने के प्रयासों में यह धारावाहिक पूरी तरह से सामंजस्य स्थापित करता है। भारत एक खोज केवल एक धारावाहिक नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, जो शिक्षा और प्रेरणा का एक सशक्त माध्यम बनकर आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है।