Thursday, June 24, 2021

हरियाणवी लोकगीतो में धर्म,अध्यात्म एवं पर्यावरण : एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का रूप ।



हरियाणवी लोकगीतों में धर्म अध्यात्म एवं पर्यावरण ही लोकमानस की सबसे अधिक निश्चल अभिव्यक्ति है जिसमें प्रदेश की सांस्कृतिक विशेषताएं परिलक्षित होती हैं। हरियाणा का लोक साहित्य अत्यंत समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का रूप है तभी तो, हरियाणा एक प्रदेश का नहीं अपितु संस्कृति का नाम है। इस प्रदेश की विरासत में सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पर्यावरण को लेकर जिन लोकगीतों की रचना हुई है, इनमें लोक आस्था की बहुमूल्य निधि समाहित है। हरियाणवी लोक गीतों में दार्शनिक ऊहापोह से संबंधित प्रश्नों को धर्म, अध्यात्म एवं पर्यावरण संरक्षण के अंतर्गत गिना जाता है। यह न केवल मानव में अपितु पशु पक्षियों में भी प्रसन्नता उत्पन्न कर देती है। पेड़ पौधे भी फूलों फलों से लबालब हो जाते हैं। प्रस्तुत लोकगीत में दर्शाया है कि-

 “मेरी पिंग तलै लाडा मोर, रै बीरा वारी वारी जाऊं

मैं तो लाऊंगी मेरे बीरै कै हाथ, रै

इन्हीं के आविर्भाव से हरियाणवी संस्कृति , अंतर्मुखी, गंभीर और मूल्यवान बनती चली गई। भक्ति आंदोलन से ओतप्रोत संतों एवं भक्तों तथा उनके पूर्ववर्ती सिद्ध-नाथो के गीत भजनों पर भी लोकगीतों की अमित छाप रही हैं। गोरखनाथ और कबीर जैसे हठयोगी साधक एवं तत्व चिंतन भी लोकगीतों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके, तभी हरियाणा में पाए जाने वाले बड़, पीपल , नीम इत्यादि फलदार पेड़ों को पर्यावरण के साथ धार्मिक आस्था की दृष्टि से महत्व प्राप्त है। यही कारण रहा है कि विश्व संस्कृतियों की तुलना में हरियाणा की पहचान धर्म, अध्यात्म और पर्यावरण में निहित है। युगों से जनता के मनोभावों को ईश्वर के निराकार, अगम, अगोचर रूप से परिचित कराते आए हैं।

    कित रम गया जोगी मंढी सुन्नी, जोगी करै, जोगी करें मंढी की रक्षा,मांग खुवावै उसने            भिक्षा कूण करेगा वा की परिकक्षा, जल गी लकड़ी भुजगी धूणी, कित--

 लोकगीतों का अनूठा संसार अपने अंतर्मन में ग्रामीण जीवन को दर्शाता है, जनमानस का दिल से गाया हुआ गीतों का हार परंपराओं तथा जीवन शैली रूपी मनको से अलंकृत है। यह सदियों से चलता आ रहा है और सदियों तक चलायमान रहेगा क्योंकि इसी से प्रेम, करुणा, अहिंसा, जीव दया, मैत्री आदि गुणों का विकास तेजी से होता है। अतःकहा जा सकता है कि हरियाणवी लोकगीत धर्म, अध्यात्म एवं पर्यावरण का समृद्ध सांस्कृतिक रूप रहे हैं।

(प्रो, वंदना पूनिया, अधिष्ठाता-शिक्षा संकाय, मानव संसाधन विकास केंद्र, गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार।

(शोधार्थी, तारा देवी, गुरु जंभेश्वर जी महाराज धार्मिक अध्ययन संकाय, गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार।)

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