Human Resource Development Centre Guru Jambheshwar University of Science & Technology, Hisar
Wednesday, August 3, 2022
Tuesday, September 7, 2021
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A MESSAGE ON TEACHER DAY
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Friday, July 23, 2021
धर्म एवं लोकसंचार
(प्रो, वंदना पूनिया, अधिष्ठाता-शिक्षा संकाय, मानव संसाधन विकास केंद्र, गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार।
(बिजेंदर दहिया, शोधार्थी, गुरु जंभेश्वर जी महाराज धार्मिक अध्ययन संकाय, गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार।)
Thursday, June 24, 2021
हरियाणवी लोकगीतो में धर्म,अध्यात्म एवं पर्यावरण : एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का रूप ।
“मेरी
पिंग तलै लाडा मोर, रै बीरा वारी वारी जाऊं
मैं तो लाऊंगी
मेरे बीरै कै हाथ,
रै”
इन्हीं के
आविर्भाव से हरियाणवी संस्कृति , अंतर्मुखी, गंभीर और मूल्यवान बनती चली गई। भक्ति आंदोलन से ओतप्रोत संतों एवं भक्तों
तथा उनके पूर्ववर्ती सिद्ध-नाथो के गीत भजनों पर भी लोकगीतों की अमित छाप रही हैं।
गोरखनाथ और कबीर जैसे हठयोगी साधक एवं तत्व चिंतन भी लोकगीतों से प्रभावित हुए
बिना नहीं रह सके, तभी हरियाणा में पाए जाने वाले बड़,
पीपल , नीम इत्यादि फलदार पेड़ों को पर्यावरण
के साथ धार्मिक आस्था की दृष्टि से महत्व प्राप्त है। यही कारण रहा है कि विश्व
संस्कृतियों की तुलना में हरियाणा की पहचान धर्म, अध्यात्म
और पर्यावरण में निहित है। युगों से जनता के मनोभावों को ईश्वर के निराकार,
अगम, अगोचर रूप से परिचित कराते आए हैं।
कित रम गया जोगी मंढी सुन्नी, जोगी करै, जोगी करें मंढी की रक्षा,मांग खुवावै उसने भिक्षा कूण करेगा वा की परिकक्षा, जल गी लकड़ी भुजगी धूणी, कित--
लोकगीतों का अनूठा संसार अपने अंतर्मन में ग्रामीण जीवन को दर्शाता है, जनमानस का दिल से गाया हुआ गीतों का हार परंपराओं तथा जीवन शैली रूपी मनको से अलंकृत है। यह सदियों से चलता आ रहा है और सदियों तक चलायमान रहेगा क्योंकि इसी से प्रेम, करुणा, अहिंसा, जीव दया, मैत्री आदि गुणों का विकास तेजी से होता है। अतःकहा जा सकता है कि हरियाणवी लोकगीत धर्म, अध्यात्म एवं पर्यावरण का समृद्ध सांस्कृतिक रूप रहे हैं।
(प्रो, वंदना पूनिया,
अधिष्ठाता-शिक्षा संकाय, मानव संसाधन विकास
केंद्र, गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,
हिसार।
(शोधार्थी, तारा देवी, गुरु जंभेश्वर जी महाराज धार्मिक अध्ययन संकाय, गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार।)
Friday, January 1, 2021
उपनिषद वाङ्गमय में बृहदारण्यक उपनिषद
उपनिषद वाङ्गमय में बृहदारण्यक उपनिषद शुक्ल यजुर्वेद की काण्व शाखा के शतपथ ब्राह्मण के अंतर्गत सबसे बृहत् उपनिषद है |उपनिषद (वेदान्त) वह गुह्य विद्या है जो गुरु के सान्निध्य में अर्जित की जाती है |वैदिक साहित्य का संक्षिप्त सार ही उपनिषद नाम से अभिहित है | धर्म एवं दर्शन की पराकाष्ठा स्वरूप बृहदारण्यक उपनिषद 3 काण्ड, 6 अध्याय और 47 ब्राह्मणो में विभक्त है | भारतीय दर्शन में आध्यात्मिक चिन्तन के सर्वोच्च नवनीत उपनिषदो में उक्त उपनिषद अपनी विद्या की परिचर्चा से सर्वोत्कृष्ठ है | इसमे वर्णीत याज्वल्क्य-मैत्रेयी,अजातशत्रु, गार्ग्य एवं दृप्तबालाकि के आध्यात्मिक संवाद विभिन्न प्रकार के आत्मा सम्बन्धी रहस्योद्घाटन में समर्थ हैं | यहाँ लौकिक सुख प्रदान करने वाली वस्तुओं की अपेक्षा परमानन्द तत्त्व की प्राप्ति को श्रेयस्कर बताया गया है | आध्यात्मिक शिक्षा को हृदयंगम करने के उपरांत मनुष्य को सांसारिक अभ्युदय एवं नि:श्रेयस की प्राप्ति स्वत: ही हो जाती है |वैदिक धर्म - दर्शन में प्रस्थानत्रयी के रुप में उपनिषद, गीता एवं ब्रह्मसूत्र उच्चरित हैं | प्रथम प्रस्थान के रुप में उपनिषद समस्त भारतीय दर्शन के लिए सर्वोपरि उपजीव्य ग्रंथ के रुप में स्वीकृत हैं |उपनिषद वाङ्गमय में बृहदारण्यक उपनिषद शुक्ल यजुर्वेद की काण्व शाखा के शतपथ ब्राह्मण के अंतर्गत सबसे बृहत् उपनिषद है |उपनिषद (वेदान्त) वह गुह्य विद्या है जो गुरु के सान्निध्य में अर्जित की जाती है |वैदिक साहित्य का संक्षिप्त सार ही उपनिषद नाम से अभिहित है | धर्म एवं दर्शन की पराकाष्ठा स्वरूप बृहदारण्यक उपनिषद 3 काण्ड, 6 अध्याय और 47 ब्राह्मणो में विभक्त है | भारतीय दर्शन में आध्यात्मिक चिन्तन के सर्वोच्च नवनीत उपनिषदो में उक्त उपनिषद अपनी विद्या की परिचर्चा से सर्वोत्कृष्ठ है | इसमे वर्णीत याज्वल्क्य_मैत्रेयी,अजातशत्रु, गार्ग्य एवं दृप्तबालाकि के आध्यात्मिक संवाद विभिन्न प्रकार के आत्मा सम्बन्धी रहस्योद्घाटन में समर्थ हैं | यहाँ लौकिक सुख प्रदान करने वाली वस्तुओं की अपेक्षा परमानन्द तत्त्व की प्राप्ति को श्रेयस्कर बताया गया है | ब्रह्म वादिनी मैत्रेयी याज्वल्क्य ऋषि द्वारा दी गई समस्त धन राशि को यह कहकर अस्वीकार कर देती है कि जिससे मुझे अमरता की प्राप्ति नहीं हो सकती, उसे लेकर मैं क्या करुंगी | ठीक ऐसा ही दृष्टान्त हमें कठोपनिषद में यम - नचिकेता संवाद में भी दृष्टिगोचर होता है | महान दार्शनिक शंकराचार्य अहं ब्रह्मस्मि अर्थात् मैं ही ब्रह्म हूँ के आध्यात्मिक ज्ञान का दीप अपने हृदय में प्रज्ज्वलित करने का आग्रह करते हैं | उनके द्वारा प्रदत्त अद्वैत दर्शन ब्रह्म को ही एकमात्र सत्य और शेष समस्त जगत को मिथ्या रुप में देखता है |औपनिषदिक शिक्षा केवल जीवन मुक्ति का मार्ग ही नहीं बतलाती वरन आधुनिक युग में जीवन जीने की कला को प्रदर्शित करके त्रिविध शान्ति का मार्ग भी प्रशस्त करती है | इसी प्रतिपदान शैली के कारण उच्च एवं गहन विचार अपरिपक्व बुद्धि वाले मनुष्यो तक भी अनायास ही पहुंच जाते हैं|आध्यात्मिक शिक्षा को हृदयंगम करने के उपरांत मनुष्य को सांसारिक अभ्युदय एवं नि:श्रेयस की प्राप्ति स्वत: ही हो जाती है
( लेखक : दीपक शास्त्री , शोद्यार्थी , धार्मिक अध्ययन संस्थान, गुरु जम्बेश्वर विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी विश्व विद्यालय
हिसार )