19 वीं शताब्दी से धर्म एक सक्रिय एवं गतिशील क्षेत्र के रूप में उभर रहा है
जिसमें धार्मिक अध्ययन को शैक्षणिक अध्ययन
के रूप में एक नयी दिशा प्राप्त हुई है। १९६४ में एसोसिएशन ऑफ स्कॉलर्स ऑफ
रिलिजियस स्टडीज ने उत्तरी अमेरिका में अमेरिकन एकेडमी ऑफ रिलिजन की स्थापना की
थी। उनका मानना था कि धार्मिक अध्ययन धर्मशास्त्र से अलग है। विभिन्न सूचना
स्त्रोतों से ज्ञात हुआ है कि इस एसोसिएशन के 11,000 सदस्यों
में शिक्षक, छात्र, शोधकर्ता व अन्य विद्वान
सम्मिलित हैं। ये सभी उतरी अमेरिका, एशिया,अफ्रिका और यूरोप के स्कूलों, कॉलेजों, व विश्वविद्यालयों के विभागों से हैं। बेयर्स, जैको
(२०१६) ने अपने शोध में समर्थन किया है कि धार्मिक अध्ययन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
एक तकनीकी शब्द बन गया है और यूनिवर्सिटी हीडलबर्ग ज़ुकुनफ़्ट, वेनबर्ग कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स एंड साइंस, ड्यूक
यूनिवर्सिटी, साउथ कैरोलिना जैसे अनेक विश्वविद्यालय हैं जिन्होंने धार्मिक अध्ययन विभाग को धर्म के
अकादमिक अध्ययन के व्यापक दायरे के रूप में स्थपित
किया है।
अमेरिका
में धर्मशास्त्र और धार्मिक अध्ययन विभाग की दो मुख्य शाखाएँ हैं। धर्मशास्त्र और
धार्मिक अध्ययन हमें जिस परिवेश में मानव रहते हैं, उस परिवेश के धार्मिक विश्वासों, प्रवृत्तियों और
प्रथाओं का पता लगाने की अनुमति देते हैं । धर्मशास्त्र एक विशिष्ट समुदाय के
दृष्टिकोण से धर्म की प्रवृत्तियों, विश्वासों, दृष्टांतों से संबंधित है। धर्मशास्त्र एक मदरसा, मठ,
मंदिर या अन्य देवत्व विद्यालयों में दैवीय प्रशिक्षण का वह
व्यवस्थित अध्ययन है जो एक विशिष्ट संदर्भ में व्यक्तिगत विश्वास और परमात्मा के
साथ संबंध पर बल देता है। धार्मिक अध्ययन के रूप में धर्म का अकादमिक अध्ययन अपेक्षाकृत
एक नया क्षेत्र है जिसका उद्देश्य सभी धार्मिक परंपराओं के साथ वस्तुपरक दृष्टिकोण
रखना है। विकिपीडिया की परिभाषा के अनुसार
"धार्मिक अध्ययन, जिसे धर्म के अध्ययन के रूप में भी
जाना जाता है, एक अकादमिक क्षेत्र है जो धार्मिक विश्वासों,
व्यवहारों और संस्थानों में अनुसंधान के लिए समर्पित है। यह
व्यवस्थित व ऐतिहासिक रूप से आधारित और क्रॉस-सांस्कृतिक दृष्टिकोणों पर बल देते
हुए धर्म की वस्तुपरक, निष्पक्ष वर्णन, तुलना, और व्याख्या करता है।"
धर्म
के अकादमिक अध्ययन का अर्थ और प्रकृति:
मुदलाल (1985)
ने धार्मिक अध्ययन को मानव संस्कृति और अस्तित्व की अभिव्यक्ति के
रूप में कहा है । क्रिससाइड्स एट अल (२०१३) ने कहा कि धार्मिक अध्ययन एक अकादमिक
अध्ययन के रूप में आध्यात्मिक खोज से संबंधित नहीं है। धार्मिक अध्ययन समस्त जगत में
आस्था , विश्वास, इतिहास, विभिन्न शास्त्र एवं मानव अस्तित्व के बारे में दार्शनिक और संदर्भ-आधारित
ज्ञान उत्पन्न करता है। यह अकादमिक दृष्टिकोण से विशेष रूप से धर्म पर प्रकाश डालता है। यदि हम एक अकादमिक
अध्ययन के रूप में धार्मिक अध्ययन की प्रकृति और दायरे को देखते हैं, तो इसमें विविध प्रकार के विषय,रुचि,तरीके एवं दृष्टिकोण शामिल हैं। धर्म का विज्ञान के रूप में प्रसिद्ध धार्मिक
अध्ययन की उपयुक्तता सामाजिक विज्ञान और मानविकी के साथ अधिक है।प्रस्तुत शोध में,
हम धार्मिक जिज्ञासा के शमन हेतु अन्य शैक्षणिक क्षेत्रों से विविध
उपकरणों, तकनीकों एवं दृष्टिकोणों का उपयोग करते हैं। उक्त अध्ययन
में छात्र इतिहास, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान,
दर्शन आदि सहित अन्य क्षेत्रों के समान उपकरणों का उपयोग करते हैं।
धार्मिक शोध में विद्वान विभिन्न प्रकार की धार्मिक प्रथाओं एवं रीतियों की तुलना
करते हैं, उनके ऐतिहासिक महत्त्व पर विचार करते हैं तथा एक
दूसरे के विश्वासों का निष्पक्ष अवलोकन करते हैं।
CAFs (1995) ने कहा कि धार्मिक अध्ययन आस्था और विश्वास से संबंधित नहीं है, इसलिए यह गैर-सिद्धांत या गैर-स्वीकृत है। धार्मिक अध्ययन
एक अंतर्निहित अंतःविषय क्षेत्र है। इसमें पवित्र वाणी, पवित्र
ग्रंथों, भाषा और साहित्य, इतिहास,
दर्शनशास्त्र, नृविज्ञान, राजनीति विज्ञान, सांस्कृतिक अध्ययन जैसे विविध
विषयों को सम्मिलित किया गया है ताकि उन विश्वासों, प्रथाओं,
परंपराओं, चित्रों, कलाकृतियों
और अन्य धार्मिक प्रवृत्तियों को बेहतर ढंग से समझा और आंकड़ों की तुलनात्मक
व्याख्या और विश्लेषण किया जा सके ।अपने-अपने विषयों में पारंगत
शोध वैज्ञानिक धर्मों के सभी पहलुओं की जांच और मूल्यांकन उपरांत मूल्यरहित और
निष्पक्ष अभिविन्यास के साथ सभी प्रश्नों का उत्तर देते हैं। धार्मिक अध्ययन का विषय
ही किसी विशेष आस्था, विश्वास को वरीयता दिए बिना तथ्यों की जांच करना है। शोध
यात्रा की प्रारंभिक अवस्था व पृष्ठभूमि में
एक व्यक्तिपरक प्रभाव हो सकता है, लेकिन शोध के अंतिम
अवस्था में परिणाम अधिक विश्लेषणात्मक और
उद्देश्यपूर्ण होते हैं। निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है धर्म के अकादमिक
अध्ययन के रूप में समग्र धार्मिक अध्ययन एक नए क्षेत्र के रुप में उभर रहा है जो
पारंपरिक धर्म की अवधारणा और धार्मिक
प्रवृत्ति की सीमाओं को लगातार चुनौती देते हुए शोध के नए क्षितिजो और आयामों के
रूप में नयी उड़ान भर रहा है।
(प्रो.वंदना पूनिया, अधिष्ठाता, शिक्षा
संकाय, मानव संसाधन विकास केंद्र , गुरु
जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय हिसार ।
https://www.researchgate.net/publication/353550397_Religious_Studies_Crossing_Boundaries_and_Breaking_New_Grounds_as_an_Academic_Study_of_Religion?_sg=kgn5aDIWXqU6mZxVYDW61ha0X0aPlHa5HD27zuhzGDHeeqIK4ClFUBFVYYR5-KrSGsjoblmOllpRRFPUeQyqo1cRQjk1e_BpIbpfAT6S.PQJH6n-H4W2GVP5G7xQZDL0aYVztdnUtSeHh9diYpOCVwLG6QHGthl_gRy237TlJm07Rz3BR3SVie3w9wgvliQ
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