विदा होने से पहले...
सुबह के 9.30
बजे...
इतनी भाग-दौड़ के बाद भी 9.30 हो
ही गए। अरे यह क्या, 9.31... ये सिस्टम भी न... एन वक़्त पर नखरे दिखाता
है... चलो, आया तो सही...
कैमरा तो ऑफ कर ही देता हूं। दाढ़ी बनाए
छह दिन हो गए, अनुराग सर क्या सोचेंगे... ओह... 9.33... चलो
लोगिन तो हुआ।
सामने स्क्रीन पर जांभोजी के तस्वीर के
साथ आवाज़ कानों में पड़ती है... तम मिटे अज्ञानता का... ज्ञान की नव भोर हो...
एक लंबी श्वांस लेता हूं, आंखें
बंद... और अज्ञानता का अंधकार धीरे-धीरे छंटने लगता है... ईश्वरीय अनुभूति का
अहसास...
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नोटबुक में तारीख डालता हूं... और साथ
ही दिन... पहला दिन, दूसरा दिन,
तीसरा... पंद्रहवां... पच्चीसवां...
उनतीसवां... हाथ कांपता है ‘अंतिम दिन’
लिखते हुए... चलो रहने ही देता हूं...
यह जो कारवां जुड़ा है, यह अनंत है...
यह तो आभासी दुनिया थीं, जिसमें
एक भी शख़्स से रूबरू नहीं हुआ,
फिर काहे का कारवां... दिमाग़ प्रश्न करता है।
-आभासी??? दिल प्रतिप्रश्न करता है- अनुराग सर
आभासी हैं? वंदना मैम आभासी हैं?
-नहीं, वे
तो हमारे गुरु हैं...
-फिर कौन आभासी हैं? अरूप
सर?
-अरे नहीं, वे
तो हमारे अंतर्मन में बस चुके हैं, बरसों
तक उनकी आवाज़ कानों में ख़नकती रहेगी। सुदूर प्रदेश से... पहाड़, नदी, नाले, खाईयां
लांघती हुई। हैलो सर... हैलो सर... हैलो... हैलो... हैलो...
-और साग्निका मैम?
-अहिंदी भाषी होते हुए भी उनकी हिंदी में इतनी
ख़नक कैसे है?
-हिंदी दिल की भाषा है न इसलिए। अब तो मिल गया
ज़वाब?
दिमाग़ अब शांत
है, दिल से कहता है- भाड़ में जाओ, तुम
जो सोचते हो, वह करो।
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वंदना मैम ने शुरू में ही कहा था कि
प्रोग्राम पूरा होने पर आपका जाने का मन ही नहीं होगा।
होगा भी कैसे मैम?
आपने कभी इस प्रोग्राम को बोझ नहीं
बनने दिया। जैसे छोटे बच्चों को संभाला जाता है, पहली, दूसरी कक्षा के... वैसे संभाला है
आपने।
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और अनुराग सर... काश... ऐसे टीचर हमें
पहले मिलते। अब तो अनुराग सर की तरह ही बनना पड़ेगा।
मुझे कॉलेज के सर याद आते हैं, जिन्होंने
एग्ज़ाम ड्यूटी से बचने के लिए झूठी कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट बनवा ली थी।
...और एक अनुराग सर हैं कि कोविड पॉजिटिव होने के
बावजूद पूरे प्रोग्राम में रोजाना सुबह से लेकर शाम तक साथ बने रहे।
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पांच बज रहे हैं... हम सवाल पर सवाल
दागे जा रहे हैं।
यह हमें हो क्या गया है... छोटी-छोटी
बातें भी पूछने की होती है क्या?...
थोड़ा ख़ुद का दिमाग़ भी लगा लो यार...
ख़ुद को प्रोफेसर और कहते हो...
मैं झल्लाता हूं।
पर अनुराग सर मुस्कुराए जा रहे हैं और
जवाब दिए जा रहे हैं।
प्रजेंटेशन कितना भी बिगड़ा हो... डेली
रिपोर्ट कितनी भी खराब बनी हो... पर अनुराग सर हमेशा उत्साहवर्धन ही करेंगे।
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और अब... इस आभासी दुनिया के ये चेहरे, तीस
दिन में संगी साथी बन गए हैं। किसी का चेहरा, किसी
की प्रोफाइल पिक्चर, किसी का नाम, किसी
का मैसेज़... बरसों बरस तक स्मृतियों में बने रहेंगे।
डॉ. राजपाल सिंह शेखावत
फैकल्टी
इंडक्शन प्रोग्राम-2,3 (18.11.2020 से 23.12.2020)
असिस्टेंट
प्रोफेसर-हिंदी
राजकीय
कन्या महाविद्यालय, पीपाड़ सिटी,
ज़िला- जोधपुर, राजस्थान-342601