Saturday, January 2, 2021

Series: 1 Let Us Learn How to Develop MOOC

 

COVID-19 has given a big push to educational experiences to move forcibly into online learning in the Indian Context. Teachers are now mentally prepared. They are ready to utilize all modern digital tools and techniques to seize the potential possibilities of e-learning technologies during these adverse circumstances. MOOC is now a popular concept in the academic world. MOOC is a Massive Open Online Course. With some expert tips, you can design, develop, and deliver your own MOOC Course.   

Here a series of tips and techniques for designing, developing, and delivering MOOC Courses are released to help the teachers with the MOOC courses.

  • While preparing and developing MOOC, you must have the characteristics of an innovative and creative teacher having some expertise in digital tools and technologies. If you have these, then go ahead. 
  • Join any MOOC course (EdX, SWAYAM, Coursera, etc.) for firsthand experience.

Preparing MOOCs:

  • Plan your Course: 

Ø  Course Name 

Ø  Syllabus

  • Chapter or Module Wise Content 

Ø  Learning outcome 

Ø  Teaching Content

Ø  Exercises and Assignments (case studies, simulations, etc.

Ø  Formative and Summative Assessments (MCQs, short and long answer types, etc.)

Ø  List of further suggested reading

Ø  Any other 

  • Hardware with internet excess 

·         Laptop or Desk Top of High configuration with high internet access

·         Inbuilt Camera and Mike ( It may be external also)

  • Software: LMS ( free or paid), Digital Tools and Technologies 

 

Continued in 2ND Series

 

(Prof. Vandana Punia, Dean Faculty of Education, Human Resource Development Centre. Guru Jambheshwar University Of S&T, Hisar. She is also the Course Coordinator of National Resource Center, Pedagogical Innovations, and Research Methodology.  (MHRD, Govt. of India).

 

Friday, January 1, 2021

उपनिषद वाङ्गमय में बृहदारण्यक उपनिषद

 उपनिषद वाङ्गमय में बृहदारण्यक उपनिषद शुक्ल यजुर्वेद की काण्व शाखा के शतपथ ब्राह्मण के अंतर्गत सबसे बृहत् उपनिषद है |उपनिषद (वेदान्त) वह गुह्य विद्या है जो गुरु के सान्निध्य में अर्जित की जाती है |वैदिक साहित्य का संक्षिप्त सार ही उपनिषद नाम से अभिहित है | धर्म एवं दर्शन की पराकाष्ठा स्वरूप बृहदारण्यक उपनिषद 3 काण्ड, 6 अध्याय और 47 ब्राह्मणो में विभक्त है | भारतीय दर्शन में आध्यात्मिक चिन्तन के सर्वोच्च नवनीत उपनिषदो में उक्त उपनिषद अपनी विद्या की परिचर्चा से सर्वोत्कृष्ठ है | इसमे वर्णीत याज्वल्क्य-मैत्रेयी,अजातशत्रु, गार्ग्य एवं दृप्तबालाकि के आध्यात्मिक संवाद विभिन्न प्रकार के आत्मा सम्बन्धी रहस्योद्घाटन में समर्थ हैं | यहाँ लौकिक सुख प्रदान करने वाली वस्तुओं की अपेक्षा परमानन्द तत्त्व की प्राप्ति को श्रेयस्कर बताया गया है | आध्यात्मिक शिक्षा को हृदयंगम  करने के उपरांत मनुष्य को सांसारिक अभ्युदय एवं नि:श्रेयस की प्राप्ति स्वत: ही हो जाती है |वैदिक धर्म - दर्शन में प्रस्थानत्रयी के रुप में उपनिषद, गीता एवं ब्रह्मसूत्र उच्चरित हैं | प्रथम प्रस्थान के रुप में उपनिषद समस्त भारतीय दर्शन के लिए सर्वोपरि उपजीव्य ग्रंथ के रुप में स्वीकृत हैं |उपनिषद वाङ्गमय में बृहदारण्यक उपनिषद शुक्ल यजुर्वेद की काण्व शाखा के शतपथ ब्राह्मण के अंतर्गत सबसे बृहत् उपनिषद है |उपनिषद (वेदान्त) वह गुह्य विद्या है जो गुरु के सान्निध्य में अर्जित की जाती है |वैदिक साहित्य का संक्षिप्त सार ही उपनिषद नाम से अभिहित है | धर्म एवं दर्शन की पराकाष्ठा स्वरूप बृहदारण्यक उपनिषद 3 काण्ड, 6 अध्याय और 47 ब्राह्मणो में विभक्त है | भारतीय दर्शन में आध्यात्मिक चिन्तन के सर्वोच्च नवनीत उपनिषदो में उक्त उपनिषद अपनी विद्या की परिचर्चा से सर्वोत्कृष्ठ है | इसमे वर्णीत याज्वल्क्य_मैत्रेयी,अजातशत्रु, गार्ग्य एवं दृप्तबालाकि के आध्यात्मिक संवाद विभिन्न प्रकार के आत्मा सम्बन्धी रहस्योद्घाटन में समर्थ हैं | यहाँ लौकिक सुख प्रदान करने वाली वस्तुओं की अपेक्षा परमानन्द तत्त्व की प्राप्ति को श्रेयस्कर बताया गया है | ब्रह्म वादिनी मैत्रेयी याज्वल्क्य ऋषि द्वारा दी गई समस्त धन राशि को यह कहकर अस्वीकार कर देती है कि जिससे मुझे अमरता की प्राप्ति नहीं हो सकती, उसे लेकर मैं क्या करुंगी | ठीक ऐसा ही दृष्टान्त हमें कठोपनिषद में यम - नचिकेता संवाद में भी दृष्टिगोचर होता है | महान दार्शनिक शंकराचार्य  अहं ब्रह्मस्मि अर्थात् मैं ही ब्रह्म हूँ के आध्यात्मिक ज्ञान का दीप अपने हृदय में प्रज्ज्वलित करने का आग्रह करते हैं | उनके द्वारा प्रदत्त अद्वैत दर्शन ब्रह्म को ही एकमात्र सत्य और शेष समस्त जगत को मिथ्या रुप में देखता है |औपनिषदिक शिक्षा केवल जीवन मुक्ति का मार्ग ही नहीं बतलाती वरन आधुनिक युग में जीवन जीने की कला को प्रदर्शित करके त्रिविध शान्ति का मार्ग भी प्रशस्त करती है | इसी प्रतिपदान शैली के कारण उच्च एवं गहन विचार अपरिपक्व बुद्धि वाले मनुष्यो तक भी अनायास ही पहुंच जाते हैं|आध्यात्मिक शिक्षा को हृदयंगम  करने के उपरांत मनुष्य को सांसारिक अभ्युदय एवं नि:श्रेयस की प्राप्ति स्वत: ही हो जाती है

( लेखक : दीपक शास्त्री शोद्यार्थी  , धार्मिक अध्ययन संस्थान, गुरु जम्बेश्वर विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी विश्व विद्यालय हिसार  )