लोकसंचार परम्परागत माध्यम के रूप में एक समृद्ध सांस्कृतिक
विरासत का महत्वपूर्ण अंग हैं। लोक संचार की उत्पति लोकसंस्कृति से हुई है । धर्म को
लोकसंचार के परिपक्ष्य में देखा जाये तो यह किसी भी स्थान की संस्कृति और परम्परा को
समृद्ध करने के साथ सूचनाओं के प्रसार और हमारे ग्रामीण लोगों को शिक्षित करने का मुख्य
औजार हैं । एडमंड ऐरिन (२०११) ने अपनी पुस्तक
में कहा है की धर्म एवम संचार एक दूसरे
से सम्बंधित हैं। धर्म संचार की विभिन्न आयामों , जनसंचार ,
लोकसंचार इत्यादि का पूर्ण उपयोग करता है। जिसका उद्द्शेय वास्तविकता या असलियत का प्रकट करना,
प्रार्थँना और उपदेश , पूजा , पवित्र ग्रंथों को पढ़ना और सुनना, अमृतवाणी का गायन ,प्रवचन अनुष्ठान
करना है। लोक संचार में धार्मिक संचार प्रक्रियाएँ
भी सम्मलित है। धर्म एवम लोक संचार समाज में
दो महत्वपूर्ण और अनिवार्य संस्थाएं है। यूनेस्को
ने धर्म ,
धार्मिक प्रवचन को लोकसंचार की मान्यता दी है। भारत के इतिहास में धर्म को लोक
संचार के रूप में राजनितिक और सामाजिक चेतना प्रदान करने के लिए मीडिया के रूप में
प्रयोग किया जाता रहा है । लोक संचार किसी भी स्थान की संस्कृति का सच्चा प्रतिनिधत्व
है।अपने धर्म ,
क्षेत्र ,जाति,पंथ और भाषा के आधार पर लोगो की अपनी संस्कृति होती है। जिसमे रीतीरिवाज , त्योहार और उत्सव
सम्मिलत होते हैं,
जिन्हे संचार प्रणाली के विभिन्न माध्यंमों, विधियों से जोड़ा जाता है। इसे पारम्परिक लोकसंचार का नाम दिया
गया है।
इसे नृत्य, संगीत , कविता , कहानी के द्वारा प्रदर्शित
किया जाता है। हर क्षेत्र ,
राज्य, स्थान की अपनी अनूठी
लोकगाथाएँ होती हैं । जो की अपने आप में अनूठी और एक विशिष्ट स्वरूप लिए हुए हैं।लोकसंचार
में जीवन की सवेंदंनाएं सम्म्लित होती हैं।लोकसंचार को इस परिभाषा से भी परिभाषित किया
जा सकता है की यह ऎसा सम्प्रेषण है जहाँ अनेक व्यक्ति एक व्यक्ति से सन्देश प्राप्त
करते हैं। बलवंत गड़गी ९१९९१) ने लोक संचार की प्रसंगिकता में वर्णित किया है की लोक संचार, पोराणिक नायक , मध्ययुगीन रोमांस , शिष्ट कथाऐ ,सामाजिक रीति रिवाज़ , आस्था व् किवदंतियों का एक समृद्ध भंडार है। लोक संचार प्राकृतिक आवास (नेचुरल हैबिटैट ) ,संगीत , नृत्य, उपसंहार , छंद
, महाकाव्ये , दिव्ये वाणी , धरम और व्रत , त्योहार आदि तत्वों की सौजन्य से बनाई गई सम्प्रेषण कला है। जटिल जातीय और धार्मिक विन्यास की चलते हुए लोकसंचार और नैतिक पत्रकारिता की माध्यम से जातीय और धार्मिक दोनों मोर्चों पर विविधता में एकता को बढ़ावा देने में धर्म एवम लोकसंचार की महत्वपूर्ण भूमिका है।
(प्रो, वंदना पूनिया, अधिष्ठाता-शिक्षा संकाय, मानव संसाधन विकास केंद्र, गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार।
(बिजेंदर दहिया, शोधार्थी, गुरु जंभेश्वर जी महाराज धार्मिक अध्ययन संकाय, गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार।)
(प्रो, वंदना पूनिया, अधिष्ठाता-शिक्षा संकाय, मानव संसाधन विकास केंद्र, गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार।
(बिजेंदर दहिया, शोधार्थी, गुरु जंभेश्वर जी महाराज धार्मिक अध्ययन संकाय, गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार।)
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